[Painting by Donald Zolan]
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दिलों के दरमियाँ ये दूरी क्यूँ है ?
तुम पास हो, फिर ये मजबूरी क्यूँ है ?
बडी जद्दोजहद के बाद घर आये हो,
अब आये हो, तो जाना जरूरी क्यूँ है ?
ये रात का नशा नहीं तो ओर क्या है,
हर सुबह के माथे पे सिंदूरी क्यूँ है ?
वो रुकना चाहे भी तो रुक नहीं सकता,
फिर ये वक्त की अकड, ये मगरूरी क्यूँ है ?
गर लब्जों में बयाँ हो, वो बात ही क्या,
पूछो निगाहों से बातें अधूरी क्यूँ है ?
क्यूँ भागते है साँसो के हिरन, ‘चातक’,
तेरी खुश्बु में बसी मेरी कस्तूरी क्यूँ है ?
– © दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक’
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