जुल्फ से हल्की-सी बारिश याद आती हैं हमें,
भूल जाने की सिफारीश याद आती है हमें,
चाहकर भी जो मुकम्मिल हम कभी ना कर सकें,
बीते लम्हों की गुजारिश याद आती हैं हमे
* * *
आज भी कोई सदा है, जो बुलाती हैं हमें
गीत में या फिर गजल में गुनगुनाती हैं हमें
वक्त बदला पर उसीकी आदतें बदली नहीं,
तब जलाती थी हमे, अब भी जलाती है हमें
बात उसकी मान लेते तो सँवर जाते, मगर,
जिन्दगी सबकुछ कहाँ जलदी सिखाती हैं हमे
वो हमारे बीच थी तो आँख में आँसू न थे,
आज उसकी याद भी महिनों रुलाती है हमें
मुँदकर आँखें अगर हम सो सकें तो ठीक है,
मौत आकर निंद में गहरी सुलाती है हमें
हम गजल का हाथ थामे इसलिये बैठे रहें
लिख नहीं पाते कभी तो वो लिखाती हैं हमें
कोई तो ‘चातक’ वजह होगी हमारे नाम की,
वरना ये कदमों की आहट क्यूँ जगाती है हमें ?
– © दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक’
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