Press "Enter" to skip to content

Tag: गज़ल

याद आती हैं हमे

जुल्फ से हल्की-सी बारिश याद आती हैं हमें,
भूल जाने की सिफारीश याद आती है हमें,
चाहकर भी जो मुकम्मिल हम कभी ना कर सकें,
बीते लम्हों की गुजारिश याद आती हैं हमे
* * *
आज भी कोई सदा है, जो बुलाती हैं हमें
गीत में या फिर गजल में गुनगुनाती हैं हमें

वक्त बदला पर उसीकी आदतें बदली नहीं,
तब जलाती थी हमे, अब भी जलाती है हमें

बात उसकी मान लेते तो सँवर जाते, मगर,
जिन्दगी सबकुछ कहाँ जलदी सिखाती हैं हमे

वो हमारे बीच थी तो आँख में आँसू न थे,
आज उसकी याद भी महिनों रुलाती है हमें

मुँदकर आँखें अगर हम सो सकें तो ठीक है,
मौत आकर निंद में गहरी सुलाती है हमें

हम गजल का हाथ थामे इसलिये बैठे रहें
लिख नहीं पाते कभी तो वो लिखाती हैं हमें

कोई तो ‘चातक’ वजह होगी हमारे नाम की,
वरना ये कदमों की आहट क्यूँ जगाती है हमें ?

– © दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक’

9 Comments

आजकल


[Painting by Amita Bhakta]

वक्त भी चलते हुए गभरा रहा है आजकल,
कौन उसके पैर को फिसला रहा है आजकल ?

रास्ते आसान है पर मंझिले मिलती नहीं,
हर कोई पत्थर से क्यूँ टकरा रहा है आजकल ?

न्याय का दामन पकडकर चल रही है छूरीयाँ,
सत्य अपने आपमें धुँधला रहा है आजकल

पतझडों ने नींव रिश्तों की हिला दी इस तरह,
पैड खुद पत्तो से यूँ कतरा रहा है आजकल

आप के चहेरे की खुश्बु को सलामत राखिये,
एक भँवरा आप पर मंडरा रहा है आजकल

वक्त की नादानियत या बेकरारी प्यार की,
कौन ‘चातक’ मोम को पिघला रहा है आजकल ?

– © दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक’

7 Comments