[Painting by Donald Zolan]
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दिलों के दरमियाँ ये दूरी क्यूँ है ?
तुम पास हो, फिर ये मजबूरी क्यूँ है ?
बडी जद्दोजहद के बाद घर आये हो,
अब आये हो, तो जाना जरूरी क्यूँ है ?
ये रात का नशा नहीं तो ओर क्या है,
हर सुबह के माथे पे सिंदूरी क्यूँ है ?
वो रुकना चाहे भी तो रुक नहीं सकता,
फिर ये वक्त की अकड, ये मगरूरी क्यूँ है ?
गर लब्जों में बयाँ हो, वो बात ही क्या,
पूछो निगाहों से बातें अधूरी क्यूँ है ?
क्यूँ भागते है साँसो के हिरन, ‘चातक’,
तेरी खुश्बु में बसी मेरी कस्तूरी क्यूँ है ?
– © दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक’
वो रुकना चाहे भी तो रुक नहीं सकता,
फिर ये वक्त की अकड, ये मगरूरी क्यूँ है ?
गर लब्जों में बयाँ हो, वो बात ही क्या,
पूछो निगाहों से बातें अधूरी क्यूँ है ?
बहोत खुब
तहे दिल से शुक्रिया
Very Very Nice.
Thank you !
वाह सभी शे’र बढिया… !! अच्छी गज़ल ………… दुसरे शे’रमें जो आपने ‘जद्दोजहज’ लब्ज़ का इस्तेमाल किया है वह सही में.. ‘जद्दोजहद’ होना चाहिये..
Thank you Ashokbhai …I have made correction accordingly.
बहुत अच्छी गझल । मत्ला का शे’र लाजवाब
किशोरभाई, आपकी होसला अफजाई के लिये बहोत बहोत शुक्रिया
क्यूँ भागते है साँसो के हिरन, ‘चातक’,
तेरी खुश्बु में बसी मेरी कस्तूरी क्यूँ है ?
– © दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक
लाजवाब ….बहुत अच्छी गझल ।
मुझे खुशी है की आपको ये गझल पसंद आयी ..
એક એક થી ચઢિયાતી, ખુબજ સુંદર રચના !!!
આભાર કરસનભાઈ
જબરદસ્ત દક્ષેશ ભાઇ.
Thank you !
Its a really very nice Daxeshbhai…. well done. keep it up….
that’s too good use of words bi used .. awesome .
I can not explain in any word. …..