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सयाने हो गये


मीतिक्षा.कोम के सभी वाचकों को दिपावली तथा नूतन वर्ष की ढेर सारी शुभकामनायें । आपके जीवन में खुशियों का ईन्द्रधनुष हमेशा बना रहें ।
*
गाँव के किस्से पुराने हो गये,
दोस्त बचपन के सयाने हो गये ।

माँ का पालव ओढने के ख्याल से,
मेरे सब सपने सुहाने हो गये ।

इश्क करने की मिली हमको सजा,
जख्म सब मेरे दिवाने हो गये ।

जिन्दगीने हाथ जो थामा नहीं,
तूट भूट्टा, दाने-दाने हो गये ।

वक्त फिर कटता रहा कुछ इस तरह,
हर पलक पर शामियाने हो गये ।

साँस की जारी रखी हमने भी जंग,
क्या हुआ, हम लहलुहाने हो गये ।

अब तो ‘चातक’ मौत से है पूछना,
क्यूँ मियाँ, आते जमाने हो गये ।

– © दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक’

5 Comments

  1. Pravin Shah
    Pravin Shah November 11, 2013

    अब तो ‘चातक’ मौत से है पूछना,
    क्यूँ मियाँ, आते जमाने हो गये ।

    very nice !

  2. Anil Chavda
    Anil Chavda November 11, 2013

    बहोत अच्छे दक्षेशभाई…

    आपनो और आपकी कलम को दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाए…

  3. અશોક જાની 'આનંદ'
    અશોક જાની 'આનંદ' November 11, 2013

    वाह, मत्लासे मक्ता तक खुबसुरत गझल..!!

    ये शे’र तो दुबारा..तिबारा..!!
    माँ का पालव ओढने के ख्याल से,
    मेरे सब सपने सुहाने हो गये ।

  4. Kishore Modi
    Kishore Modi November 15, 2013

    નખશિખ સુંદર ગઝલ

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