जुल्फ से हल्की-सी बारिश याद आती हैं हमें,
भूल जाने की सिफारीश याद आती है हमें,
चाहकर भी जो मुकम्मिल हम कभी ना कर सकें,
बीते लम्हों की गुजारिश याद आती हैं हमे
* * *
आज भी कोई सदा है, जो बुलाती हैं हमें
गीत में या फिर गजल में गुनगुनाती हैं हमें
वक्त बदला पर उसीकी आदतें बदली नहीं,
तब जलाती थी हमे, अब भी जलाती है हमें
बात उसकी मान लेते तो सँवर जाते, मगर,
जिन्दगी सबकुछ कहाँ जलदी सिखाती हैं हमे
वो हमारे बीच थी तो आँख में आँसू न थे,
आज उसकी याद भी महिनों रुलाती है हमें
मुँदकर आँखें अगर हम सो सकें तो ठीक है,
मौत आकर निंद में गहरी सुलाती है हमें
हम गजल का हाथ थामे इसलिये बैठे रहें
लिख नहीं पाते कभी तो वो लिखाती हैं हमें
कोई तो ‘चातक’ वजह होगी हमारे नाम की,
वरना ये कदमों की आहट क्यूँ जगाती है हमें ?
– © दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक’
वक्त बदला पर उसीकी आदतें बदली नहीं,
तब जलाती थी हमे, अब भी जलाती है हमें
बात उसकी मान लेते तो सँवर जाते, मगर,
जिन्दगी सबकुछ कहाँ जलदी सिखाती हैं हमे
वो हमारे बीच थी तो आँख में आँसू न थे,
आज उसकी याद भी महिनों रुलाती है हमें
.. વાહ
ક્યા બાત હૈ….
बात उसकी मान लेते तो सँवर जाते, मगर,……
बहुत अच्छी मननीय गझल कही ।
जन्मदिनकी हार्दिक शुभकामनाएं |
अब हिन्दुस्तानीमें भी आपके जौहर दिखने लगे हैं, बडी अच्छी गझल कही है आपने..
बात उसकी मान लेते तो सँवर जाते, मगर,
जिन्दगी सबकुछ कहाँ जलदी सिखाती हैं हमे
वाह….
जन्मदिनकी हार्दिक शुभकामनाएं…..!!
fantastic !!!!!
बहुत अच्छी मननीय गझल कही आपने।
જન્મદિવસના ખૂબ ખૂબ અભિનન્દન!!! સાહિત્ય જગત અને અધ્યાત્મ જગતની ખૂબ ખૂબ સેવા કરવાની તક ઇશ્વર તમને આપે. ‘સ્વ’ને ઓળખવાની યાત્રામાં ઘણે આગળ વધો અને આ યાત્રામાં બન્ને જગત તમને મદદ કરે એવી અન્તરની શુભેચ્છાઓ !!!!
जिन्दगी सबकुछ कहाँ जलदी सिखाती हैं हमे
સરસ ગઝલ થઈ છે દક્ષેશભાઈ…. આપની પકડ હિન્દી-ઉર્દૂ પર પણ ખૂબ જ સારી છે.
Waaaah. ……….