[Painting by Donald Zolan]
अगर तुम साथ हो तो ख्वाब की उम्मीद क्यूँ रक्खे ?
जवाँ हो रात तो फिर भोर की उम्मीद क्यूँ रक्खे ?
अगर तुम ये कहो की हम तुम्हें ना भूल पायेंगे,
खुदा के हाथ से फिर भूल की उम्मीद क्यूँ रक्खे ?
समजदारी पे पर्दा छा गया जिनकी अदाओं से,
वो आये पास तो हम होश की उम्मीद क्यूँ रक्खे ?
हमें गुमराह करके चल दिये वो अपनी मंझिल पर,
हुए खुद लापता तो खोज की उम्मीद क्यूँ रक्खे ?
दिये जो घाव अपनोंने, जमाना भर नहीं सकता,
कोई मरहम के हाथों चोट की उम्मीद क्यूँ रक्खे ?
फँसाना है अगर दुनिया, बुरे हैं लोग दुनिया के,
तो फिर हम कब्र में भी चैन की उम्मीद क्यूँ रक्खे ?
जिन्हीं के घाव से छलनी हुई यह जिन्दगी ‘चातक’,
उन्हीं से एक कतरा खून की उम्मीद क्यूँ रक्खे ?
– © दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक’
वाह…….
दिये जो घाव अपनोंने, जमाना भर नहीं सकता,
कोई मरहम के हाथों चोट की उम्मीद क्यूँ रक्खे ?
વાહ..બહુ જ અદભૂત રચના.
बहोत खुब……
समजदारी पे पर्दा छा गया जिनकी अदाओं से,
वो आये पास तो हम होश की उम्मीद क्यूँ रक्खे ? … વાહ વાહ
ભાઈ સાબ કહના પડે!!
” દિયે જો ઘાવ અપનોને, જમાના ભર નહી શકતા
કોઇ મરહમ કે હાથો ચોટકી ઉમ્મીદ ક્યું રકખે??”
આપ દોનો ભાષામે કમાલકી રચના પેશ કીયા કરતે હૈ!!
બહુત અચ્છી ગઝલ. અભિનંદન.
उम्मीद क्यूँ रक्खे ?….બહોત ખૂબ !
મગર હમારી ઉમ્મિદ તો આપ જાનતે હૈં ન !
Hi Daxesh,
फँसाना है अगर दुनिया … tooo good.
મારો થાક ઉતરી ગયો યુ.એસ.માં વીત્યા દિવસોનો… simply લાજવાબ.
हमें गुमराह करके चल दिये वो अपनी मंझिल पर,
हुए खुद लापता तो खोज की उम्मीद क्यूँ रक्खे ?
Waah. Congratulations for very nice Ghazal in Hindi too.Buck up.It will open new sky for you.
અચ્છા હૈ દક્ષેશભાઈ