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आजकल


[Painting by Amita Bhakta]

वक्त भी चलते हुए गभरा रहा है आजकल,
कौन उसके पैर को फिसला रहा है आजकल ?

रास्ते आसान है पर मंझिले मिलती नहीं,
हर कोई पत्थर से क्यूँ टकरा रहा है आजकल ?

न्याय का दामन पकडकर चल रही है छूरीयाँ,
सत्य अपने आपमें धुँधला रहा है आजकल

पतझडों ने नींव रिश्तों की हिला दी इस तरह,
पैड खुद पत्तो से यूँ कतरा रहा है आजकल

आप के चहेरे की खुश्बु को सलामत राखिये,
एक भँवरा आप पर मंडरा रहा है आजकल

वक्त की नादानियत या बेकरारी प्यार की,
कौन ‘चातक’ मोम को पिघला रहा है आजकल ?

– © दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक’

7 Comments

  1. Dipesh Kheradiya
    Dipesh Kheradiya May 7, 2014

    वाह..वाह..आफ्रीन ~ दक्षेशभाइ

    आप के चहेरे की खुश्बु को सलामत रखीये
    एक भँवरा आप पर मंडरा रहा है आजकल

  2. Dilip Gajjar
    Dilip Gajjar May 10, 2012

    न्याय का दामन पकडकर चल रही है छूरीयाँ,
    सत्य अपने आपमें धुँधला रहा है आजकल

    पतझडों ने नींव रिश्तों की हिला दी इस तरह,
    पैड खुद पत्तो से यूँ कतरा रहा है आजकल
    બહોત અચ્છે દક્ષેશભાઈ લોગ સત્ય કો કુચલને સે ભી શરમાતે નહી હૈ..
    આપકે અશઆર પ્રેરીત હૈ..

  3. सत्य अपने आपमें धुँधला रहा है आजकल…

    बहोत खूब !
    आजकल की बातें ठीक तरह कही गई है हर शे’र में !
    हमारे अभिनंदन स्वीकरीए साहब !

  4. અશોક જાની 'આનંદ'
    અશોક જાની 'આનંદ' May 8, 2012

    पतझडों ने नींव रिश्तों की हिला दी इस तरह,
    पैड खुद पत्तो से यूँ कतरा रहा है आजकल
    बहोत खूब, बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही है, आपने…!!

  5. Anil Chavda
    Anil Chavda May 8, 2012

    અચ્છી ગઝલ હુઈ હૈ દક્ષેશભાઈ…
    આપકી કલમ હર બાર નઈ તરહ સે નીખરતી હૈ….

  6. पतझडों ने नींव रिश्तों की हिला दी इस तरह,
    पैड खुद पत्तो से यूँ कतरा रहा है आजकल

    ક્યા બાત હૈ આજકલ..??? દક્ષેશભાઈ બહોત ખુબ..

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