हिन्दी में गज़ल लिखनी मैंने अभी-अभी शुरू की है।
इस ब्लोग पर हिन्दी में प्रस्तुत की गई यह मेरी प्रथम गज़ल है ।
यह आपको कैसी लगी ये जरूर बताईयेगा, आपके प्रतिभावों का मुझे इंतजार रहेगा ।
कई किस्से मुहोब्बत के सुनाये भी नहीं जाते
मिले जो घाव अपनों से, बताये भी नहीं जाते
उदासी थामकर दामन हमारे घर चली आयी,
कई महेमान एसे है भगाये भी नहीं जाते
हमें मालूम है की अश्क मोतीओं से बहेतर है
मगर आंसू को धागों में पिरोये भी नहीं जाते
गरीबी झेलना शायद जरा आसान हो जाता,
नमक के साथ आंसू को पकाये भी नहीं जाते
बिना पूछे चले आये वो मेरी नींद में अक्सर,
परीन्दो की तरह सपनें उडाये भी नहीं जाते
खुदा के नाम से डरता नहीं अब कोई आलम में
बुरे इन्सान को मंदिर बिठाये भी नहीं जाते
गिला-शिकवा जरूरी है मुहोब्बत की कहानी में,
मगर ‘चातक’ यहां किस्से गिनाये भी नहीं जाते
– दक्षेश कोन्ट्राकटर ‘चातक’
Bahut achche chatak Saab
“हमें मालूम है की अश्क मोतीओं से कीमती है
मगर आंसू को धागों में पिरोये भी नहीं जाते”
– बहोत खूब
અતિ સુન્દર.
સુંદર !
-સ્નેહા પટેલ.
દક્ષેશભાઈ, તમારી પ્રથમ હિન્દી ગઝલ ખુબ જ સરસ છે.
ઘણા વખતથી તેની રાહ જોવાતી હતી. ભારતની ધરતી પરથી સુંદર શરૂઆત.
मिले जो घाव अपनों से, बताये भी नहीं जाते
बिना पूछे चले आये वो मेरी नींद में अक्सर,
परीन्दो की तरह सपनें उडाये भी नहीं जाते
વાહ ભાઇ સરસ વિચાર….સુંદર ગઝલ
બહુ સરસ રચના.. અભિવ્યક્તિ સરસ રહી
kharekhar hindi vakay rachna khub sari che.
દરેક પકિતઓ એક એકથી ચઢીયાતી. ખુબ જ સુન્દર રચના.
ગુજરાતી- હિન્દીમા પણ “ચાતકજી” ની ભારે કમાલનો, આ પહેલો નમુનો !!!!!
बिना पूछे चले आये वो मेरी नींद में अक्सर,
परीन्दो की तरह सपनें उडाये भी नहीं जाते
द्क्षेशभाई बहोत ही खूबसूरत गझल बनी है..मै भी हिन्दीमे लिखती हुं लेकीन अभी तक गझल नही लीखी ..आपका अनुभव जरूर मुजेह बताना .. गुजरातीसे अलग है या फीर एक जेसी…आपका हुन्दी पर अच्छा प्रभाव है..
आपकी ग़ज़ल अच्छी है, हिन्दीमें भी विचार अभिव्यक्ति अच्छी है.
हमें मालूम है की अश्क मोतीओं से बहेतर है
मगर आंसू को धागों में पिरोये भी नहीं जाते
गरीबी झेलना शायद जरा आसान हो जाता,
नमक के साथ आंसू को पकाये भी नहीं जाते …बहोत खूब,..!!
વાહ! ચાતકનું વિશ્વ વિસ્તરી રહ્યુ છે! બહોત ખૂબ!
સરસ કંટ્રોલ છે ભાષા પર,ગમ્યું.
उदासी थामकर दामन हमारे घर चली आयी,
कई महेमान एसे है भगाये भी नहीं जाते
हमें मालूम है की अश्क मोतीओं से बहेतर है
मगर आंसू को धागों में पिरोये भी नहीं जाते
गरीबी झेलना शायद जरा आसान हो जाता,
नमक के साथ आंसू को पकाये भी नहीं जाते
बिना पूछे चले आये वो मेरी नींद में अक्सर,
परीन्दो की तरह सपनें उडाये भी नहीं जाते
खुदा के नाम से डरता नहीं अब कोई आलम में
बुरे इन्सान को मंदिर बिठाये भी नहीं जाते
અતિ ઉત્તમ રચના…વાહ દક્ષેશભાઈ…આખી રચના ખૂબ સરસ…